(पाठकों की रचनाएँ)
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‘बेवजह’
बेवजह ही हंस लिए, बेवजह ही रो लिए,
ऐसा क्या है हो लिया, हम दीवाने हो लिए।
कौन समझेगा भला, दिल की ये दुश्वारियां,
कर के कुछ गुज़र गया या करने की तैयारियां,
कुछ तो ऐसे राज़ हैं जो राज़ ही हैं हो लिए।
बेवजह ही हंस, बे वजह ही रो लिए,
ऐसा क्या है हो लिया, हम दीवाने हो लिए।
मुस्कुरालो हक़ है तुम्हे, मेरे यूँ हंस लेने पर,
खुदा कसम ना आंसू बहाओ, मेरे रो लेने पर,
करके किनारा चल लेना, समझ बेगाने हो लिए,
बेवजह ही हंस, बे वजह ही रो लिए,
ऐसा क्या है हो लिया, हम दीवाने हो लिए।
हंसना हंसना हंस लेना, हर हंसने में मतलब है.
आंख में आंसू खुश हो लेना भी तो करतब है.
दुःख में आंसू कभी कभी, खुश्क से हैं हो लिए
बे वजह ही हंस लिए , बे वजह ही रो लिए .
ऐसा क्या है हो लिया , हम दीवाने हो लिए .
– जुनेजा शशिकांत
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‘बंटवारा’
आज यहाँ एक घर टूटा
हाँ वही घर जो दो बार बना।
एक सपनो का घर
दूसरा जो टूट रहा है।
वही घर जहाँ कभी किलकारियां ली थी
वही घर जहाँ बचपन बीता
गुड्डे गुड्डी का खेल कहूँ
या नुक़्क़ा छिप्पी।
हाँ आज यहाँ एक घर टूटा
रसोई घर, देवता घर, नहान घर
अब एक दूसरे से कभी बातें नहीं करेंगे।
ओसारे में बैठकर बारिश को देखना
गौरैये की चहचहाहट सुनना
मानो बरसों का वो रंगमंच है टूटा।
हाँ आज यहाँ एक घर टूटा।
घर का संदूक चारदिवारी से निकलकर
अनाथ सा महसूस कर रहा है।
आखिर जाये तो जाये किसके हिस्से में
कभी सबको बाँध कर रखना
चौखट का वो घमंड है टूटा।
हाँ आज यहाँ एक घर टूटा।
कोना भी ढूंढ रहा कोई बहाना रोने को
जो कभी गुड्डू, चिमकी और मेरे काम आता था।
ईंट ईंट का हिसाब अब रखेगा कौन
जो जुड़े थे कभी एक दूसरे से
अब मानो टूटे रिश्ते की भांति बिखड़े हुए हैं।
दरवाज़े के बगल में टंगा
वो दर्पण है टूटा।
हाँ आज यहाँ एक घर टूटा
आज यहाँ एक घर टूटा।
– चंदन कुमार मिश्रा
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‘इनायत‘
थोड़ी इनायत कर दे , मुझे दरवेश समझ कर।
भीख में उल्फत दे दे, मुझे दरवेश समझ कर।।
मैं कोई खड़ा नहीं हूँ , बेजान बूत बन कर।
मेरा दीदार कर ले , मुझे दरपेश समझ कर।।
मेरा ऐतबार कर ले , बेवफा ना बन कस कर ।
मैंने दिल दिया है , तुझे बख्शिश समझ कर।।
मैं आशिक हूँ तेरा , फिरता हूँ पूजारी बन कर।
फैसला जल्दी ना कर, मुझे फाहिश समझ कर।।
थोड़ा फ़र्क समझ ले, रहा हूँ तन्हा बन कर।
महफिल में बुला ले, मेरी ख्वाहिश समझ कर।।
मेरे गम को बढ़ा कर, दिल से घायल ना कर।
गहरे ज़ख्म दे दे , ‘बुलंद’ रंजिश समझ कर।।
– लवकेश कुमार शर्मा (लव ‘बुलंद’)