- धनंजय कुमार
- 19 August 2018
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कॉपीराइट सुरक्षा के मूलभूत नियम
स्क्रीनराइटर्स के क़ानूनी अधिकारों और SWA की DSC के कामकाज पर विशेष शृंखला - भाग 1
SWA की डिसप्यूट सैटलमेंट कमिटी
स्क्रीनराइटर्स एसोसिएशन में मूलतः तीन तरह की शिकायतें आती हैं, एक तो यह कि उसकी कहानी या स्क्रिप्ट या उसके गाने चोरी हो गए, दूसरा निर्माता स्क्रीन पर उसका नाम नहीं दे रहा और तीसरा स्क्रिप्ट या गाने लिखने के जो पारिश्रमिक तय किये थे, वो नहीं दे रहा है, और इसी से जुड़ा एक और मामला होता है कि चेक दिया था, बाउंस हो गया.
इन मामलों के निबटारे के लिए स्क्रीनराइटर्स एसोसिएशन ने एक कमिटी बनाई हुई है, जिसका नाम है “डिसप्यूट सैटलमेंट कमिटी” संक्षेप में इसे DSC भी कहते हैं. कमिटी मामलों को देखती है और अगर उसको लगता है कि केस बनता है तो उस पर सुनवाई करती है और विवाद के दोनों पक्षकारों को सुनती है, तथ्यों को परखती है और समाधान तक पहुँचती है.
लेकिन कमिटी लेखक के मामले पर विचार करे, इससे पहले सदस्य लेखक को कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ती हैं. एसोसिएशन के शिकायत पत्र (Complaint Form) को विधिवत भरना पड़ता है और जितने भी तथ्य उनके पास हैं, उसकी जेरॉक्स कॉपी जमा करानी होती है. तथ्य से अभिप्राय है, चोरी गयी कहानी, स्क्रिप्ट या गाने की कॉपी, दो पक्षों के बीच ईमेल या टेक्स्ट के माध्यम से हुई बातचीत का ब्यौरा और आरोपी से मिलने का प्रमाण. उसके बाद एसोसिएशन की वकील उन तथ्यों की बारीकियों की जांच करती है और अगर उसे लगता है कि मामला कॉपीराइट उल्लंघन का बनता है, फिर वह मामला सुनवाई के लिए कमिटी के पास भेज दिया जाता है.
कमिटी पहले शिकायत करने वाले लेखक से मिलती है, उनकी बातें सुनती है, तर्क वितर्क करती है और जब तसल्ली हो जाती है कि शिकायतकर्त्ता सही है, तो सम्बंधित आरोपी को अगली मीटिंग में सपोर्टिंग दस्तावेज के साथ उपस्थित होने का नोटिस भेजती है. जब आरोपी पक्ष उपस्थित होता है, तो कमिटी पहले उसके पक्ष को सुनती है, फिर शिकायत करने वाले लेखक के उपलब्ध कराये गए तथ्य के आधार पर उनसे तर्क वितर्क करती है और निर्णय पर पहुँचती है.
चोरी का मामला साबित हो जाता है तब कमिटी आरोपी पक्ष को निर्देश देती है कि उसे उचित पारिश्रमिक का भुगतान करे और स्क्रीन पर नाम भी दे. पारिश्रमिक का निर्धारण फिल्म इंडस्ट्री के कई एसोसिएशनों के मेल से बने फेडरेशन और प्रोड्यूसर्स एसोसिएशनों के बीच तय राशि के आधार पर किया जाता है.
कॉपीराइट की चोरी, अर्थात?
ये तो बात तब हुई जब कि चोरी का मामला साबित हो जाता है. लेकिन इस तरह के मामले इतने आसान नहीं होते हैं. चोरी हुई है ये साबित करना तब तो फिर भी थोड़ा आसान होता है, जब दोनों के मिलने का प्रमाण होता है, लेकिन जब दोनों पक्ष कभी आपस में मिले ही न हों, तब मामला पेचीदा और बड़ा ही तकनीकी हो जाता है.
कमिटी के सामने आजकल ऐसे कई मामले आते हैं, जिसमें लेखक फिल्म या सीरियल का ट्रेलर या पूरी फिल्म या सीरियल के कुछ एपिसोड्स देखकर शिकायत करने आ जाते हैं कि फलां फिल्म या सीरियल मेरी कहानी या स्क्रिप्ट पर बनी है. कुछ मामलों में ऐसा होता भी है कि शिकायत कर्त्ता आरोपी पक्ष से भले ही न मिला हो, लेकिन स्क्रिप्ट मिलती जुलती होती है, ऐसे में संभावना होती है किसी और व्यक्ति के माध्यम से कहानी आरोपी तक जा पहुँची हो. ऐसे मामलों में जांच परख के बाद जब कमिटी को लगता है कि यह सचमुच कॉपीराइट का मामला है, तब कमिटी कार्रवाई की प्रक्रिया को आगे बढाती है. लेकिन ऐसे मामलों में जब शिकायतकर्त्ता के आरोप कॉपीराइट उल्लंघन के दायरे में नहीं आ पाते हैं. लेकिन शिकायत कर्त्ता को लगता है कि कमिटी उनकी शिकायत को गंभीरता से नहीं ले रही है. तो यहाँ यह जान लेना बेहद जरूरी है कि कॉपीराइट है क्या ?
प्रायः शिकायतकर्त्ता जेनरिक से यानी आम घटनाक्रम को चोरी से जोड़ लेते हैं. लेकिन इसे चोरी का मामला नहीं माना जा सकता है. इसलिए हमारे लेखक साथियों के लिए जान लेना जरूरी है कि ये जेनरिक का मतलब क्या ?
जेनरिक से आइडिया पर किसी का कॉपीराइट नहीं होता !
कॉपीराइट मामले में जेनरिक बड़ा आम शब्द है, तो हम हिन्दी वाले इसे जान लें जेनरिक का मतलब क्या होता है? जेनरिक मतलब आम, सामान्य. प्रायः. कहानी या स्क्रिप्ट के सन्दर्भ में जब जेनरिक का इस्तेमाल होता है, तो उसका अभिप्राय है ऐसा कंटेट जो आम हो, जैसे गाँवों में यदि टॉयलेट्स नहीं हैं तो जाहिर है महिलायें भी टॉयलेट के लिए गाँव से बाहर खुले में जायेंगी. वह अलसुबह जायेंगी जब अन्धेरा हो, वह शाम में तभी जायेंगी, जब अन्धेरा हो जाय. और जब उन्हें अंधेरे में जाना होता है, तो प्रायः झुण्ड में जायेंगी. सांप बिच्छू भी काट सकते हैं और कभी कोई गुंडा बदमाश भी बदमाशी कर सकता है. ये भी संभव है कि कभी कोई घर का ही व्यक्ति उस रास्ते से गुजरे और अपने घर की औरत को टॉयलेट करते देख ले. अब अगर कोई ऐसी फिल्म बनती है, जिसमें टॉयलेट की समस्या हो और उसमें इस तरह के सीन हैं, तो आप ये नहीं कह सकते कि फिल्मकार ने आपकी कहानी या आपकी कहानी का सीन चुरा लिया.
लेकिन नए लेखकों को ऐसे में लगता है कि उनकी कहानी या उनका सीन चोरी हो गया. जबकि ये साम्यता कंटेंट के आम होने या कहें जेनरिक होने का मामला है.
कई लेखक संवादों में प्रयुक्त शब्दों के मिलने पर भी चोरी का आरोप लेकर आ जाते हैं या कोई एक पंक्ति या स्लोगन के मिलने से मान लेते हैं कि यह उनकी कहानी या स्क्रिप्ट से उठाया गया है, जो कि सच नहीं है. कॉपीराइट क़ानून के अनुसार किसी शब्द या स्लोगन पर किसी का कॉपीराइट नहीं होता है.
तो समाधान क्या है?
यहाँ यह समझना ज़रूरी है कि कॉपीराइट का मामला उतना सीधा सिंपल नहीं है, जितना आम तौर पर राइटर साथी समझ लेते हैं, बल्कि यह बड़ा ही पेचीदा और तकनीकी मामला है और इसे साबित करना बहुत आसान नहीं होता. इसलिए जरूरी है कि लेखक अपनी सुरक्षा को लेकर कुछ एहतियात बरतें.
सबसे पहले तो कहानी या स्क्रिप्ट कॉपीराइट सोसायटी या स्क्रीनराइटर्स एसोसिएशन में रजिस्टर्ड करवाने की आदत डालें. ऐसा संभव न हो किसी वजह से, तो पहले अपने एक ईमेल से अपने ही दूसरे ईमेल पर स्क्रिप्ट मेल कर दें. उसके बाद ही किसी को सुनाएँ या दें. और सुनाने या देने के बाद मीटिंग या सुनाने के दौरान के अनुभव उस आदमी को मेल कर दें, या मोबाइल पर टेक्स्ट मैसेज भेज दें कि फलां सब्जेक्ट पर मैंने आपको कहानी या स्क्रिप्ट सुनाई थी, आपके साथ मिलने-सुनाने का अनुभव अच्छा रहा, आपने आगे मिलने या काम करने की बात की इत्यादि इत्यादि.
कहने का आशय है कि आपके कहानी या स्क्रिप्ट सुनाने या देने के दौरान जो हुआ उसे शब्दबद्ध कर उन्हें भेज दें. ताकि अगर आपकी कहानी चोरी हो तो आप क्लेम कर सकें. ऐसी स्थिति में आपका दावा मजबूत हो जाता है. अगर उसने आपकी कहानी का आइडिया भी उठाया है तो आपका क्लेम बन जाएगा.
लेकिन कई बार ऐसा भी अनुभव हुआ है कि लेखक हमारे वकील या डिसप्यूट सैटलमेंट कमिटी के समझाने के बाद भी नहीं समझते कि उनका आरोप सही नहीं है. वे र बठते हैं कि उनकी स्क्रिप्ट चोरी हुई है और उन्हें उनका हक़ दिलाया जाय. ऐसी स्थिति में एसोसिएशन के सामने मुश्किल ये हो जाती है कि लेखक को ये लगता है कि कमिटी ने उनके साथ न्याय नहीं किया या कमिटी के लोग आरोपी से मिले हैं और उनको फ़ेवर कर रहे हैं, जो कि सत्य नहीं है. ऐसे में कमिटी अक्सर ये सलाह दे देती है कि आप कोर्ट जा सकते हैं.
ऊपरोक्त बातों का ध्यान रखा जाए तो कॉपीराइट चोरी से जुड़े मुद्दों को समझा भी जा सकता है और ऐसी चोरी से बचा भी जा सकता है.
अगली किस्त में, कॉपीराइट को सुरक्षित करने के लिए कॉन्ट्रैक्ट (अनुबंध) की अहमियत पर बात करेंगे.

धनंजय कुमार हिंदी और भोजपुरी फ़िल्म-टीवी लेखक के तौर पर जाने जाते हैं। आप वर्तमान में स्क्रीनराइटर्स एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष का पदभार सम्भालने के साथ एसोसिएशन की डिसप्यूट सैटलमेंट कमेटी (डीएससी) के सदस्य भी हैं।